प्रस्तावना: दिल्ली की भर्ती, लेकिन दांव पूरे भारत का
दिल्ली सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्शन बोर्ड (DSSSB) ने 2025 में Trained Graduate Teacher (TGT) पदों के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी है।
यह भर्ती न सिर्फ दिल्ली बल्कि देश के लगभग हर राज्य के अभ्यर्थियों के लिए एक बड़ा अवसर है — क्योंकि DSSSB की नौकरियाँ स्थिरता, अच्छी सैलरी, और सरकारी शिक्षक का दर्जा देती हैं।
पर सवाल यह है —
क्या यह अवसर सबके लिए समान है?
क्या दिल्ली के बाहर के अभ्यर्थियों — विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के उम्मीदवारों — को आवेदन और परीक्षा में वैसा ही मौका मिलता है जैसा दिल्लीवासियों को?
इस लेख में हम इन्हीं सवालों की पड़ताल करेंगे — नीतिगत ढांचे से लेकर जमीन पर आने वाली वास्तविक चुनौतियों तक।
related article: दिल्ली पुलिस हेड कांस्टेबल की 509 पदों पर भर्ती
DSSSB भर्ती का दायरा: “दिल्ली का बोर्ड, राष्ट्रीय उम्मीदें”
DSSSB दिल्ली सरकार का भर्ती निकाय है, जो PRT, TGT, PGT, नर्स, क्लर्क, स्टेनोग्राफर जैसे कई पदों के लिए परीक्षा आयोजित करता है।
हालांकि यह बोर्ड दिल्ली के प्रशासनिक नियंत्रण में है, लेकिन इसमें आवेदन का दायरा अखिल भारतीय (All India) है।
इसलिए बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, पंजाब और यहां तक कि उत्तर-पूर्व से भी बड़ी संख्या में उम्मीदवार आवेदन करते हैं।
कारण स्पष्ट है —
- दिल्ली में शिक्षकों के पे-स्केल अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है।
- कार्य-परिस्थितियाँ और सुविधाएँ बेहतर हैं।
- और DSSSB की भर्ती प्रक्रिया नियमित और ट्रांसपेरेंट मानी जाती है।
लेकिन जब कोई अभ्यर्थी दिल्ली के बाहर से आवेदन करता है, तो यह “राष्ट्रीय अवसर” अचानक “स्थानीय संघर्ष” में बदल जाता है।
1. आवेदन से पहले की बाधा — “डिजिटल डिस्टेंस”
भले ही आवेदन ऑनलाइन माध्यम से होता है, लेकिन दूर-दराज़ के राज्यों के अभ्यर्थियों के सामने कई समस्याएँ आती हैं:
नेटवर्क और सर्वर-समस्या
कई बार DSSSB की आधिकारिक वेबसाइट पर लोडिंग एरर या सर्वर डाउन का मुद्दा देखने को मिलता है, खासकर अंतिम तिथि के नजदीक।
दिल्ली के उम्मीदवार जहाँ बेहतर इंटरनेट स्पीड का लाभ उठा लेते हैं, वहीं ग्रामीण बिहार या झारखंड के छात्र कई-कई घंटे साइट खोलने में लगा देते हैं।
दस्तावेज़ अपलोड में कठिनाई
TGT भर्ती में उम्मीदवारों को कई दस्तावेज़ (शैक्षणिक प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, अनुभव आदि) PDF के रूप में अपलोड करने होते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्कैनर, सॉफ्टवेयर, साइबर कैफे जैसी सुविधा सीमित होती है। परिणामस्वरूप, कई आवेदन तकनीकी कारणों से “Reject” हो जाते हैं।
आवेदन शुल्क भुगतान
DSSSB में आवेदन शुल्क ऑनलाइन पेमेंट गेटवे के माध्यम से जमा होता है।
छोटे कस्बों या गांवों में कार्ड-पेमेंट, नेट-बैंकिंग या UPI जैसी सुविधाओं की सीमित पहुँच होती है, जिससे कुछ उम्मीदवार अंत तक भुगतान नहीं कर पाते।
related article: राज्य भाषा की दीवार: क्या महाराष्ट्र के 135 पदों पर गैर-मराठी उम्मीदवारों के लिए रास्ते बंद कर रही है
2. परीक्षा केंद्रों की दूरी — “हजारों किलोमीटर का सफर”
दिल्ली में DSSSB परीक्षा केंद्र सीमित हैं — मुख्यतः दिल्ली और NCR क्षेत्र में।
ऐसे में बिहार, यूपी या झारखंड से आने वाले उम्मीदवारों को लंबा सफर तय करना पड़ता है।
यात्रा-खर्च और ठहराव की चुनौती
- बिहार के पटना या भागलपुर से दिल्ली आने-जाने का रेल-भाड़ा लगभग ₹1500-₹2500 तक पहुँच जाता है।
- अगर परीक्षा दो दिन की हो या सुबह-सुबह का स्लॉट मिले, तो उम्मीदवारों को होटल/लॉज में ठहरना पड़ता है, जिसका खर्च ₹1000-₹2000 प्रति रात होता है।
- यह भार खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों पर भारी पड़ता है।
महिला अभ्यर्थियों की सुरक्षा चिंता
महिला उम्मीदवारों के लिए रात में यात्रा, अजनबी शहर में परीक्षा केंद्र ढूंढना और अकेले रहना अतिरिक्त जोखिम पैदा करता है।
दिल्ली जैसे महानगर में सुरक्षा-संवेदनशीलता एक बड़ा पहलू है, जिसे शायद भर्ती-नीति में कभी प्राथमिकता नहीं दी जाती।
3. भाषा और क्षेत्रीय संचार की कठिनाई
DSSSB की परीक्षा हिंदी-अंग्रेजी माध्यम में होती है, लेकिन दिल्ली का सामाजिक-भाषाई वातावरण बाहरी उम्मीदवारों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- कई बार स्थानीय संचार (जैसे प्रवेश-द्वार या निर्देश-बोर्ड) केवल अंग्रेजी में होता है।
- प्रॉब्लम-सॉल्विंग डेस्क या हेल्पलाइन पर हिंदी-उत्तर भारतीय टोन में बात करने पर अभ्यर्थी को असुविधा होती है।
- यह भी देखा गया है कि परीक्षा-केंद्र स्टाफ का रवैया “बाहर से आए उम्मीदवारों” के प्रति उदासीन रहता है।
ऐसे में मानसिक दबाव परीक्षा-प्रदर्शन पर असर डालता है।
4. दिल्ली के उम्मीदवारों को अतिरिक्त लाभ
दिल्ली के स्थानीय उम्मीदवारों को कई स्तरों पर लाभ मिलता है —
- ट्रांसपोर्ट और सेंटर की निकटता — उन्हें परीक्षा के दिन यात्रा-खर्च और समय का नुकसान नहीं होता।
- काउंसलिंग और दस्तावेज़ सत्यापन भी दिल्ली में होता है, जिससे बाहरी उम्मीदवारों को फिर से सफर करना पड़ता है।
- स्थानीय कोचिंग नेटवर्क — दिल्ली में DSSSB-फोकस्ड कोचिंग संस्थानों की भरमार है।
- जानकारी तक त्वरित पहुँच — स्थानीय समाचार-माध्यमों में DSSSB अपडेट्स आसानी से मिलते हैं।
इसलिए समान अवसर सिद्धांत के बावजूद, भौगोलिक निकटता ही सबसे बड़ा लाभ बन जाती है।
6. अभ्यर्थियों की वास्तविक आवाज़
झारखंड के देवघर से आए एक उम्मीदवार बताते हैं —
“मैंने आवेदन तो कर दिया, पर परीक्षा-केंद्र दिल्ली में मिला। दो दिन का सफर, 4 हजार रुपये खर्च और दो दिन की छुट्टी लेनी पड़ी। यह खर्च मेरी मासिक कमाई का बड़ा हिस्सा है।”
वहीं बिहार के सहरसा से एक महिला अभ्यर्थी कहती हैं —
“पहली बार दिल्ली गई थी, परीक्षा-केंद्र ढूंढने में ही तीन घंटे लग गए। रात में अकेले लौटना डरावना था, पर सरकारी नौकरी के सपने के लिए यह सब सहना पड़ता है।”
इन अनुभवों से साफ है —
“समान अवसर” केवल नीति-कागज तक है; व्यवहार में दूरी और खर्च, कई प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को पीछे छोड़ देता है।
7. डेटा की जरूरत: कितने उम्मीदवार दिल्ली के बाहर से?
DSSSB ने अब तक राज्य-वार आवेदन-डेटा सार्वजनिक नहीं किया है।
अगर यह डेटा सामने आए, तो पता चलेगा कि कितने प्रतिशत उम्मीदवार बिहार, यूपी या झारखंड से आवेदन करते हैं और उनमें से कितनों का चयन होता है।
यह पारदर्शिता नीति-निर्माताओं को समान अवसर सुधार के लिए डेटा-आधारित निर्णय लेने में मदद करेगी।
8. भविष्य की दिशा — “भर्ती का राष्ट्रीयकरण जरूरी”
अगर दिल्ली सच में राष्ट्रीय राजधानी है, तो उसकी भर्तियों को भी “राष्ट्रीय” बनना चाहिए।
इसका मतलब है —
- परीक्षा केंद्रों का देश-भर में वितरण,
- उम्मीदवारों की भौगोलिक-सामाजिक विविधता का सम्मान,
- और नीति-निर्माण में बाहरी राज्यों की भागीदारी।
NEP 2020 का एक प्रमुख लक्ष्य “शिक्षा में समान अवसर” है।
DSSSB जैसी संस्थाएँ अगर इस दृष्टिकोण को अपनाएँ, तो देश भर के शिक्षित युवाओं को सच्चा अवसर मिल सकता है।
निष्कर्ष: दिल्ली तक पहुँचना ही सबसे बड़ी परीक्षा
DSSSB TGT 2025 भर्ती निश्चित रूप से लाखों युवाओं के लिए सुनहरा मौका है।
लेकिन दिल्ली के बाहर के अभ्यर्थियों के लिए यह सिर्फ परीक्षा नहीं, बल्कि एक लंबी यात्रा है —
जहाँ नेटवर्क, दूरी, खर्च और व्यवस्था हर कदम पर परीक्षा लेते हैं।
सपनों की इस मंज़िल को “राष्ट्रीय” बनाने का समय अब आ चुका है —
जहाँ किसी उम्मीदवार के लिए दिल्ली पहुँचना खुद परीक्षा न बन जाए,
बल्कि परीक्षा उसके ज्ञान की हो, न कि उसके भौगोलिक पते की।