उत्तर प्रदेश सरकार ने 2025 में 44,000 होम गार्ड पदों पर भर्ती की घोषणा कर दी है। यह संख्या अपने-आप में बहुत बड़ी है और बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए यह खबर राहत जैसी है। सोशल मीडिया पर इसे “रोजगार क्रांति” कहा जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि – क्या यह अवसर वास्तव में गांवों के युवाओं तक पहुंच पाएगा, या फिर यह एक और शहरी-केंद्रित भर्ती बनकर रह जाएगी?
ग्रामीण युवाओं के लिए भर्ती का मतलब
उत्तर प्रदेश के गांवों में रहने वाले अधिकांश युवक 10वीं पास या अधिकतम इंटरमीडिएट स्तर तक पढ़े होते हैं। सरकारी नौकरी का सपना उनके लिए सिर्फ आर्थिक सुरक्षा नहीं, बल्कि सम्मान और पहचान का प्रतीक होता है।
ऐसे में होम गार्ड भर्ती जैसी नौकरियां, जिनमें उच्च शिक्षा की जरूरत नहीं है, उनके लिए एक बड़ी संभावना बनकर आती हैं।
लेकिन दूसरी तरफ, इन युवाओं के सामने डिजिटल पहुंच, आवेदन शुल्क, यात्रा खर्च और तैयारी के साधनों की कमी जैसी कई चुनौतियाँ भी हैं।
आवेदन प्रक्रिया: गांव से ऑनलाइन तक की दूरी
UP Home Guard भर्ती की पूरी प्रक्रिया अब ऑनलाइन माध्यम से की जा रही है — आवेदन, एडमिट कार्ड, परीक्षा सूचना सब कुछ वेबसाइट पर मिलेगा।
गांवों के युवाओं के लिए यह सबसे बड़ा अड़चन बिंदु है।
- बहुत से गांवों में अब भी नेटवर्क समस्या या स्मार्टफोन की कमी है।
- इंटरनेट कैफ़े या साइबर कैफ़े तक पहुँचने में 10 से 20 किलोमीटर तक सफर करना पड़ता है।
- कई बार स्थानीय दुकानदार आवेदन में ₹100–₹200 तक लेते हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं के लिए अतिरिक्त बोझ है।
कोचिंग और तैयारी: छोटे कस्बों की सीमाएँ
होम गार्ड परीक्षा में सामान्य ज्ञान, तर्कशक्ति (Reasoning), हिंदी और गणित जैसे विषय होते हैं।
शहरी छात्रों को कोचिंग सेंटर और ऑनलाइन गाइडेंस का लाभ मिलता है, लेकिन छोटे गांवों में रहने वाले उम्मीदवारों के पास:
- कोचिंग की सुविधा नहीं,
- स्टडी मैटेरियल महंगा,
- और नेट की सीमित पहुंच होती है।
आर्थिक बोझ: “मुफ्त भर्ती” का छिपा खर्च
सरकार ने आवेदन शुल्क न्यूनतम रखा है, लेकिन असली खर्च वहीं नहीं रुकता।
- परीक्षा केंद्र तक यात्रा का खर्च,
- दस्तावेज़ तैयार कराने का खर्च (फोटो, प्रिंट, स्कैन आदि),
- और तैयारी के लिए कोचिंग या सामग्री का खर्च —
ये सब मिलाकर प्रति उम्मीदवार ₹1000–₹1500 तक हो सकता है।
एक किसान परिवार के लिए यह रकम कई दिन की मजदूरी के बराबर है।
इस तरह, भले ही भर्ती “सभी के लिए खुली” है, पर आर्थिक असमानता के कारण कई ग्रामीण उम्मीदवार शुरुआती चरण में ही बाहर रह जाते हैं।
अवसर बनाम पहुंच: संख्या ही सबकुछ नहीं
44,000 पदों की घोषणा सुनने में बहुत बड़ी लगती है। लेकिन यूपी जैसे विशाल राज्य में जहाँ 75 जिले और करोड़ों बेरोजगार युवा हैं, वहाँ यह संख्या महज एक शुरुआत है।
अगर आवेदन करने वाले उम्मीदवारों की संख्या 10 से 15 लाख तक पहुँचती है, तो प्रतिस्पर्धा और भी तीव्र होगी।
यहाँ ज़रूरी है कि सरकार इन पदों को केवल “संख्या” में न देखे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि अवसर का लाभ भौगोलिक और सामाजिक दोनों रूप से समान मिले।
क्या यह भर्ती ग्रामीण युवाओं को पलायन से रोकेगी?
हर साल हजारों युवक रोज़गार की तलाश में लखनऊ, नोएडा, दिल्ली या मुंबई की ओर पलायन करते हैं।
अगर यह भर्ती ग्रामीण स्तर पर नज़दीकी तैनाती (local posting) देती है, तो यह पलायन को कम कर सकती है।
गांव में ही सेवा करने का अवसर न केवल रोजगार देगा बल्कि ग्रामीण सुरक्षा प्रणाली को भी मजबूत करेगा।
related article : राज्य-स्तर पर UPSC वैकेंसी का असंतुलन: छोटे राज्यों के लिए अवसर या समस्या?
महिलाओं के लिए अवसर या औपचारिक आरक्षण
भर्ती में महिलाओं के लिए 20% आरक्षण की बात की गई है, जो स्वागतयोग्य है।
लेकिन ग्रामीण समाज में महिलाओं की भागीदारी आज भी कई सामाजिक और पारिवारिक बाधाओं से घिरी है।
क्या गांव की लड़कियाँ शारीरिक परीक्षा, ट्रेनिंग और पोस्टिंग तक पहुँच पाएँगी?
इसका उत्तर तभी मिलेगा जब राज्य स्तर पर सुरक्षित प्रशिक्षण केंद्र, अलग महिला बैच और स्थानीय सुविधा दी जाए।
related article: DSSSB TGT भर्ती 2025: दिल्ली के बाहर के अभ्यर्थियों के लिए परीक्षा तक का सफर कितना कठिन? बिहार, यूपी, झारखंड के उम्मीदवारों की असल कहानी
नीतिगत सुधार की जरूरत
यदि सरकार वास्तव में इस भर्ती को समावेशी (inclusive) बनाना चाहती है, तो कुछ कदम जरूरी हैं:
- ब्लॉक स्तर पर आवेदन सहायता केंद्र बनाए जाएँ।
- ग्रामीण युवाओं के लिए ऑफ़लाइन हेल्प डेस्क शुरू हो।
- परीक्षा केंद्रों को जिला स्तर से ब्लॉक स्तर तक ले जाया जाए।
- महिला उम्मीदवारों के लिए सुरक्षित ट्रेनिंग कैम्प और हॉस्टल हों।
निष्कर्ष–
UP Home Guard Recruitment 2025 को सरकार एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रही है।
लेकिन किसी भी भर्ती की सफलता इस बात से तय होती है कि क्या गांव के आखिरी युवक तक उसका लाभ पहुंच पाया या नहीं।
44,000 पदों की यह भर्ती तभी सार्थक होगी जब इसमें आवेदन से लेकर चयन तक की प्रक्रिया सुलभ, पारदर्शी और सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण हो।